Tuesday, 21 July 2015

Jain Suvichar SMS



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Ichhaka matlab aafat- Duniyak kante dur karvanek badle chappal= Prabhuk naamk pehenlo Ye ichha dur karneka shrestha upay he

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Dursaro ke Malik bananewala bada nahi kahalata.

Bada to vah hota hai jo khud Atma ka malik ban jata hai,

Khud Apne Aap par kabij ho jata hai

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Light se andhkar darta he,

Fight se klesh badhta he,

Jo everyday PRABHU ka naam rat ta he,

Uske dilse durbhav hat ta he.

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Hamesha Prem Ki Bhasha Boliye Ise

Behre Bhi Sun Sakte Hai,

Aur Gunge Bhi Samaj Sakte Hai.

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Monday, 20 July 2015

आदिनाथ दिगंबर जैन मंदिर पर चोरों का धावा, वर्षों पुरानी प्रतिमाएं चोरी


 

आदिनाथ दिगंबर जैन मंदिर पर चोरों का धावा, वर्षों पुरानी प्रतिमाएं चोरी

डूंगरपुर., July 5, 2015: डूंगरपुर जिले के सागवाड़ा नगर में कंसारा चौक स्थित आदिनाथ दिगंबर जैन मंदिर (गांधियों का मंदिर) में गुरुवार देर रात अज्ञात चोरों ने मंदिर के साइड की जाली व सरिए तोड़कर प्राचीन प्रतिमाएं एवं चांदी के छत्र चुराकर फरार हो गए।
समाज के सेठ दिलीप कुमार नोगामिया ने बताया कि शुक्रवार सुबह 5 बजे जब मंदिर के सेवक बालकृष्ण ने पूजा-अर्चना के लिए मंदिर का मुख्य व गर्भ गृह का दरवाजा खोला, तो घटना की जानकारी मिली। उसने मंदिर में जिन प्रतिमाएं मौके पर नहीं पाकर जैन समाज के मुख्य लोगों को सूचना दी।
समाजजन तत्काल मंदिर पहुंचे व पुलिस थाने में सूचना दी। सूचना मिलने पर पुलिस निरीक्षक मनीष चारण, सहायक उपनिरीक्षक नारायण लाल मकवाणा पुलिसकर्मियों के साथ मौके पर पहुंचे एवं समाजजनों से घटना एवं चोरी गए सामान के बारे में जानकारी ली।
इसके बाद डीएसपी ब्रजराजसिंह चारण ने मंदिर का मौका मुआयना किया तथा पुलिस निरीक्षक चारण को दिशा निर्देश दिए। इस दौरान नरेन्द्र खोडनिया, अश्विन बोबड़ा, प्रदीप दोसी, महेन्द्र शाह, भरत शाह, चन्द्रशेखर संघवी, बदामीलाल मेहता, सुनील गोवाडिय़ा व सागरमल शाह आदि मौजूद थे।
नया मंदिर कमेटी के अध्यक्ष कीर्तिकुमार शाह के अनुसार मंदिर में विभिन्न स्थानों पर रखी छोटी-बड़ी पीतल की करीब 23 प्रतिमाएं तथा 500 ग्राम वजनी चांदी के 7 छत्र चुरा ले गए। प्रतिमाओं की लंबाई करीब 3 से 7 इंच तक थी। सभी प्रतिमाएं 100 से 250 साल पुरानी थी।
चोरी से जैन समाज में रोष व्याप्त है। समाज के सेठ नोगामिया के अनुसार मंदिर से चुराई प्रतिमाएं समाजजनों की आस्था व श्रद्धा की प्रतीक हैं। समाजजन रोजाना इन प्रतिमाओं का अभिषेक कर पूजा-अर्चना करते थे। चोरी से श्रद्धालुओं को ठेस पहुंची है।
समाजजनों ने पुलिस निरीक्षक से विशेष जांच दल गठित करने की मांग की। मंदिर के पास संकरी गली है, जिसमें दुपहिया वाहनों के साथ लोग पैदल ही आवागमन करते हैं।
जैन समाज के लोगों ने आशंका जताई कि चोरों ने इस गली की दीवार से चढ़कर मंदिर में प्रवेश किया। समाजजनों के मुताबिक मुख्य मंदिर की जाली व लोहे के सरिए तोड़कर चोर अंदर घुसे और जो भी हाथ लगा, समेटकर नौ-दो ग्यारह हो गए। - Rajasthan Patrika

बयाना के दिगम्बर जैन मंदिर मंदिर से चांदी के छत्र व दान राशि चोरी

बयाना के दिगम्बर जैन मंदिर मंदिर से चांदी के छत्र व दान राशि चोरी 

February 24, 2015 बयाना कस्बे के दिगम्बर जैन मंदिर से शनिवार शाम को एक युवक दर्शन करने के बहाने मन्दिर में मौजूद तीन चांदी के छत्र व दो दानपेटियों में रखी राशि को चोरी कर ले गया। घटना का पता रविवार सुबह मंदिर में पूजा करने आए पुजारी को लगा। पुजारी ने इसकी सूचना जैन समाज के पदाधिकारियों को दी।

जैन समाज के अध्यक्ष व मंत्री की ओर से पुलिस में अज्ञात व्यक्ति के खिलाफ माला दर्ज कराया गया है। सूचना पर थाना प्रभारी हीरालाल सैनी, उपनिरीक्षक विनोद मीणा, टाउन चौकी प्रभारी शिवगणेश मावई आदि ने मंदिर पहुंच कर मौका मुआयना किया तथा लोगों से घटना की ली।

जैन समाज के अध्यक्ष प्रमोद जैन ने बताया कि शनिवार शाम करीब 4 बजे एक युवक मंदिर में आया। इसी बीच मौका देखकर युवक श्रीचन्द्रप्रभु भगवान की प्रतिमा के ऊपर लगे करीब 800 ग्राम वजनी तीन चांदी के छत्रों तथा दो दानपेटियों के ताले तोड़कर उनमें रखी दानराशि को चोरी कर ले गया।

रविवार सुबह पुजारी सोनू जैन स्नान पूजा के लिए मंदिर आए तो उन्हें भगवान के छत्र गायब मिले तथा दानपेटियों के ताले टूटे मिले। घटना की खबर लगते ही मंदिर परिसर में जैन समाज के लोगों की भीड़ एकत्र हो गई। लोगों ने घटना पर रोष जताते पुलिस प्रशासन से माल बरामद करने व आरोपी को गिरफ्तार करने की मांग की। - राजस्थान पत्रिका

जयस्थल जैन मंदिर से प्रतिमाएं चोरी

जयस्थल जैन मंदिर से प्रतिमाएं चोरी

बूंदी/गेण्डोली , April 21,2015: गेण्डोली थाना क्षेत्र के जयस्थल गांव स्थित जैन मंदिर से मंगलवार रात भगवान महावीर व यंत्रजी की प्राचीन प्रतिमाएं और सिंहासन, दो दानपेटी सहित आधा दर्जन चांदी के छत्र चोरी हो गए। सूचना पर कापरेन और गेण्डोली थाना पुलिस मौके पर पहुंची।
कापरेन थाना अधिकारी दिग्विजय सिंह ने बताया कि सुबह करीब साढ़े पांच बजे जयस्थल निवासी पूरणमल जैन पूजा के लिए मंदिर पहुंचे तो मुख्य दरवाजे का ताला टूटा हुआ मिला। उन्होंने घटना की जानकारी समाज के अन्य लोगों को दी। तब सभी मंदिर में पहुंचे और जानकारी की।
ग्रामीणों ने मौके पर पहुंची पुलिस को बताया कि मंदिर से पाषाण से बनी भगवान महावीर स्वामी व अष्टधातु से बनी यंत्रजी की प्रतिमा चोरी हो गई। चोर मंदिर में रखी दो दानपेटियां व आधा दर्जन चांदी के छत्र भी ले गए। मंदिर से एक मेटल का सिंहासन भी गायब है। ग्रामीणों की रिपोर्ट पर गेण्डोली थाना पुलिस ने चोरी का मामला दर्ज कर लिया है।
कापरेन थाना अधिकारी ने मंदिर के आस-पास के स्थान पर तलाशी भी की, लेकिन कोई सुराग नहीं लगा। बूंदी से एमओबी टीम भी पहुंची, जिन्होंने मंदिर से फिंगर प्रिंट लिए। -patrika.com

500 साल पुराने जैन मंदिर से अष्टधातु की प्रतिमाएं चोरी

500 साल पुराने जैन मंदिर से अष्टधातु की प्रतिमाएं चोरी

महेश्वर, May 6, 2015: प्राचीन दिगंबर जैन मंदिर में गुरूवार-शुक्रवार की दरमियानी रात्रि 2.24 बजे तीन बदमाशों ने चोरी की सनसनीखेज वारदात को अंजाम दिया। मंदिर में घुसने के लिए चोरों ने चार ताले तोड़कर यहां रखीं पांच सौ साल पुरानी अष्टधातु की चार प्रतिमाओं सहित अष्टधातु के सात छत्र व चांदी का एक छत्र चुरा ले गए।
वारदात को मात्र 12 मिनट में अंजाम देकर चोर रफूचक्कर हो गए। पूरी वारदात मंदिर में लगे सीसीटीवी कैमरे में कैद हुई है। गश्त के दौरान पुलिस ने चोरी की सूचना समाज के अध्यक्ष राजेंद्र जैन को दी। मंदिर पहंुचने पर जैन ने बताया कि प्रतिमाएं 500 वर्ष पुरानी हैं। इनकी कीमत लाखों में है। 12 इंच की पाश्र्वनाथ प्रभु की प्रतिमा एवं तीन छोटी प्रतिमा सहित 8 छत्र चोरी गए हैं। घटनास्थल पर एडिशनल एसपी राजेश दंडोतिया शुक्रवार सुबह 10 बजे पहुंचे।
उन्होंने मंदिर का मौका मुआयना एवं सीसीटीवी फुटेज देखे। उन्होंने बताया कि फुटेज में बदमाशों के चेहरे दिख रहे हैं, पुलिस का 50 प्रतिशत काम हो गया है। शीघ्र ही चोरों को गिरफ्तार कर प्रतिमाएं बरामद कर ली जाएंगी।
मंदिर में पूर्व मे भी दो बार चोरियां हो चुकी हैं। आज तक कोई सुराग नहीं लग पाया है। चोरी होने से जैन समाज में आक्रोश है। समाजजनों का कहना है यदि शीघ्र ही चोरों को नहीं पकड़ा तो आंदोलन किया जाएगा। पुलिस ने प्रकरण दर्ज कर मामला जांच में लिया है। Source: patrika.com

Sunday, 19 July 2015

जैन धर्म - इतिहास की नजर में





दुनिया के सबसे प्राचीन धर्म जैन धर्म को श्रमणों का धर्म कहा जाता है। वेदों में प्रथम तीर्थंकर ऋषभनाथ का उल्लेख मिलता है। माना जाता है कि वैदिक साहित्य में जिन यतियों और व्रात्यों का उल्लेख मिलता है वे ब्राह्मण परंपरा के न होकर श्रमण परंपरा के ही थे। मनुस्मृति में लिच्छवि, नाथ, मल्ल आदि क्षत्रियों को व्रात्यों में गिना है।

जैन धर्म का मूल भारत की प्राचीन परंपराओं में रहा है। आर्यों के काल में ऋषभदेव और अरिष्टनेमि को लेकर जैन धर्म की परंपरा का वर्णन भी मिलता है। महाभारतकाल में इस धर्म के प्रमुख नेमिनाथ थे।

जैन धर्म के 22वें तीर्थंकर अरिष्ट नेमिनाथ भगवान कृष्ण के चचेरे भाई थे। जैन धर्म ने कृष्ण को उनके त्रैसष्ठ शलाका पुरुषों में शामिल किया है, जो बारह नारायणों में से एक है। ऐसी मान्यता है कि अगली चौबीसी में कृष्ण जैनियों के प्रथम तीर्थंकर होंगे।

ईपू आठवीं सदी में 23वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ हुए, जिनका जन्म काशी में हुआ था। काशी के पास ही 11वें तीर्थंकर श्रेयांसनाथ का जन्म भी हुआ था। इन्हीं के नाम पर सारनाथ का नाम प्रचलित है।

भगवान पार्श्वनाथ तक यह परंपरा कभी संगठित रूप में अस्तित्व में नहीं आई। पार्श्वनाथ से पार्श्वनाथ संप्रदाय की शुरुआत हुई और इस परंपरा को एक संगठित रूप मिला। भगवान महावीर पार्श्वनाथ संप्रदाय से ही थे।

jain dharma history
 
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जैन धर्म में श्रमण संप्रदाय का पहला संप्रदाय पार्श्वनाथ ने ही खड़ा किया था। ये श्रमण वैदिक परंपरा के विरुद्ध थे। यही से जैन धर्म ने अपना अगल अस्तित्व गढ़ना शुरू कर दिया था। महावीर तथा बुद्ध के काल में ये श्रमण कुछ बौद्ध तथा कुछ जैन हो गए। इन दोनों ने अलग-अलग अपनी शाखाएं बना ली।

ईपू 599 में अंतिम तीर्थंकर भगवान महावीर ने तीर्थंकरों के धर्म और परंपरा को सुव्यवस्थित रूप दिया। कैवल्य का राजपथ निर्मित किया। संघ-व्यवस्था का निर्माण किया:- मुनि, आर्यिका, श्रावक और श्राविका। यही उनका चतुर्विघ संघ कहलाया। भगवान महावीर ने 72 वर्ष की आयु में देह त्याग किया।

भगवान महावीर के काल में ही विदेहियों और श्रमणों की इस परंपरा का नाम जिन (जैन) पड़ा, अर्थात जो अपनी इंद्रियों को जीत लें।

धर्म पर मतभेद : अशोक के अभिलेखों से यह पता चलता है कि उनके समय में मगध में जैन धर्म का प्रचार था। लगभग इसी समय, मठों में बसने वाले जैन मुनियों में यह मतभेद शुरू हुआ कि तीर्थंकरों की मूर्तियां कपड़े पहनाकर रखी जाए या नग्न अवस्था में। इस बात पर भी मतभेद था कि जैन मुनियों को वस्त्र पहनना चाहिए या नहीं। 

आगे चलकर यह मतभेद और भी बढ़ गया। ईसा की पहली सदी में आकर जैन धर्म को मानने वाले मुनि दो दलों में बंट गए। एक दल श्वेतांबर कहलाया, जिनके साधु सफेद वस्त्र (कपड़े) पहनते थे, और दूसरा दल दिगंबर कहलाया जिसके साधु नग्न (बिना कपड़े के) ही रहते थे।

श्वेतांबर और दिगंबर का परिचय : भगवान महावीर ने जैन धर्म की धारा को व्यवस्थित करने का कार्य किया, लेकिन उनके बाद जैन धर्म मूलत: दो संप्रदायों में विभक्त हो गया: श्वेतांबर और दिगंबर।

दोनों संप्रदायों में मतभेद दार्शनिक सिद्धांतों से ज्यादा चरित्र को लेकर है। दिगंबर आचरण पालन में अधिक कठोर हैं जबकि श्वेतांबर कुछ उदार हैं। श्वेतांबर संप्रदाय के मुनि श्वेत वस्त्र पहनते हैं जबकि दिगंबर मुनि निर्वस्त्र रहकर साधना करते हैं। यह नियम केवल मुनियों पर लागू होता है।

दिगंबर संप्रदाय मानता है कि मूल आगम ग्रंथ लुप्त हो चुके हैं, कैवल्य ज्ञान प्राप्त होने पर सिद्ध को भोजन की आवश्यकता नहीं रहती और स्त्री शरीर से कैवल्य ज्ञान संभव नहीं; किंतु श्वेतांबर संप्रदाय ऐसा नहीं मानते हैं।

दिगंबरों की तीन शाखा हैं मंदिरमार्गी, मूर्तिपूजक और तेरापंथी, और श्वेतांबरों की मंदिरमार्गी तथा स्थानकवासी दो शाखाएं हैं।

दिगंबर संप्रदाय के मुनि वस्त्र नहीं पहनते। 'दिग्‌' माने दिशा। दिशा ही अंबर है, जिसका वह 'दिगंबर'। वेदों में भी इन्हें 'वातरशना' कहा है। जबकि श्वेतांबर संप्रदाय के मुनि सफेद वस्त्र धारण करते हैं। कोई 300 साल पहले श्वेतांबरों में ही एक शाखा और निकली 'स्थानकवासी'। ये लोग मूर्तियों को नहीं पूजते।

जैनियों की तेरहपंथी, बीसपंथी, तारणपंथी, यापनीय आदि कुछ और भी उपशाखाएं हैं। जैन धर्म की सभी शाखाओं में थोड़ा-बहुत मतभेद होने के बावजूद भगवान महावीर तथा अहिंसा, संयम और अनेकांतवाद में सबका समान विश्वास है। 

गुप्त काल : ईसा की पहली शताब्दी में कलिंग के राजा खारावेल ने जैन धर्म स्वीकार किया। ईसा के प्रारंभिक काल में उत्तर भारत में मथुरा और दक्षिण भारत में मैसूर जैन धर्म के बहुत बड़े केंद्र थे।

पांचवीं से बारहवीं शताब्दी तक दक्षिण के गंग, कदम्बु, चालुक्य और राष्ट्रकूट राजवंशों ने जैन धर्म के प्रचार-प्रसार में महत्वपूर्ण योगदान दिया। इन राजाओं के यहां अनेक जैन मुनियों, कवियों को आश्रय एवं सहायता प्राप्त होती थी।

ग्याहरवीं सदी के आसपास चालुक्य वंश के राजा सिद्धराज और उनके पुत्र कुमारपाल ने जैन धर्म को राजधर्म घोषित कर दिया तथा गुजरात में उसका व्यापक प्रचार-प्रसार किया गया।

मुगल काल : मुगल शासन काल में हिन्दू, जैन और बौद्ध मंदिरों को आक्रमणकारी मुस्लिमों ने निशाना बनाकर लगभग 70 फीसदी मंदिरों का नामोनिशान मिटा दिया। दहशत के माहौल में धीरे-धीरे जैनियों के मठ टूटने एवं बिखरने लगे लेकिन फिर भी जै‍न धर्म को समाज के लोगों ने संगठित होकर बचाए रखा। जैन धर्म के लोगों का भारतीय संस्कृति, सभ्यता और समाज को विकसित करने में बहुत ही महत्वपूर्ण योगदान रहा है। इति।